6 - معاني الكلمات سورة الأنعام
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الآية |
الكلمة |
التفسير |
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1 |
جعل . . |
أنشأ
وأبدع . . |
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1 |
بربّهم يعدلون |
يسوّون
به غيره في العبادة |
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2 |
قضى أجلاً |
كتب
وقدّر زمانًا مُعيّنا للموت |
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2 |
أجل مسمّى عنده |
زمن
مُعيّن للبعث مُستأثر بعلمه |
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2 |
تمترون |
تشكّون
في البعث أو تجحدونه |
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3 |
وهو الله |
أي
المعبود أو المتوحّد بالألوهية |
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5 |
أنباء |
أخبار
. وهو ما ينالهم من العقوبات |
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6 |
كم أهلكنا |
كثيراً
أهلكنا |
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6 |
قرن |
أمّة
من النّاس |
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6 |
مكّناهم |
أعطيناهم
من المكنة والقوّة |
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6 |
السّماء |
المطر |
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6 |
مدرارا |
غزيرا
كثير الصبّ |
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7 |
كتابا في قرطاس |
مكتوبا
في كاغد أو رق |
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8 |
لا يُنظرون |
لا
يُمهلون لحظة بعد إنزاله |
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9 |
للبسنا عليهم
ما يلبسون |
لخلطنا
وأشكلنا عليهم حينئذٍ ما يخلِطون على أنفسهم اليوم |
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10 |
فحاق . . |
أحاط،
أو نزل . . |
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12 |
كتب |
قضى
وأوجب، تفضّلا وإحسانا |
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12 |
خسروا أنفسهم |
أهلكوها
وغبنوها بالكفر |
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13 |
ما سكن |
ما
استقرّ وحلّ |
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14 |
وليّا |
ربّا
معبودًا وناصرًا معينا |
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14 |
فاطر . . |
مُبدع
ومخترع . . |
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14 |
هو يُطعم |
يرزق
عباده |
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14 |
من أسلم |
خضع
لله بالعبودية وانقاد له |
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19 |
من بلغ |
من
بلغه القرآن إلى قيام الساعة |
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23 |
فتنتهم |
معذرتهم
. أو عاقبة شركهم |
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24 |
ظلّ عنهم |
غاب
وزال عنهم |
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24 |
ما كانوا يفترون |
يكذبون
- الأصنام وشفاعتهم |
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25 |
أكِنّة |
أغطية
كثيرة |
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25 |
وقرا |
صمما
وثِقلا في السّمع |
|
25 |
أساطير الأوّلين |
أكاذيبهم
المسطّرة في كتبهم |
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26 |
ينأون عنه |
يتباعدون
عن القرآن بأنفسهم |
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27 |
وُقفوا على النّار |
عرّفوها،
أو حُبسوا على متنها |
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30 |
وُقفوا على ربّهم |
حُبسوا
على حُكمه تعالى للسّؤال |
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31 |
بغتة |
فجأة
من غير شعور |
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31 |
فرّطنا فيها |
قصّرنا
وضيّعنا في الحياة الدّنيا |
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31 |
أوزارهم |
ذنوبهم
وخطاياهم |
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34 |
لكلمات الله |
آيات
وعده بنصر رسله |
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35 |
كبُر عليك |
شقّ
وعظُم عليك |
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35 |
نفقا في الأرض |
سربا
فيها ينفذ إلى ما تحتها |
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38 |
أممٌ أمثالكم |
في
خلقنا لها وتدبيرنا أمورها |
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38 |
ما فرّطنا |
ما
أغفلنا وتركنا |
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39 |
في الظّلمات |
ظلمات
الجهل والعناد والكفر |
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40 |
أرأيتكم |
أخبروني
عن عجيب أمركم |
|
42 |
بالبأساء والضرّاء |
البؤس
والفقر والسّقم والزّمان |
|
42 |
يتضرّعون |
يتذلّلون
ويتخشّعون ويتوبون |
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43 |
جاءهم بأسنا |
أتاهم
عذابنا |
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44 |
كلّ شيء |
من
النّعم الكثيرة استدراجا لهم |
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44 |
أخذناهم بغتة |
أنزلنا
بهم العذاب فجأة |
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44 |
هم مبلسون |
آيسون
من الرّحمة أو مُكتئبون |
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45 |
دابر القوم |
آخرهم |
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46 |
أرأيتم |
أخبروني |
|
46 |
نصرّف الآيات |
نكرّرها
على أنحاء مُختلفة |
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46 |
هم يصدفون |
هم
يُعرضون عنها ويعدلون |
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47 |
أرأيتكم |
أخبروني |
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47 |
بغتة |
فجاءة
أو ليلا |
|
47 |
جهرة |
مُعاينة
أو نهارا |
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50 |
خزائن الله |
مرزوقاته
أو مقدوراته |
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52 |
بالغداة والعشيّ |
في
أول النّهار وآخره، أي دواما |
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53 |
فتنّا |
ابتلينا
وامتحنّا ونحن أعلم بهم |
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54 |
كتب ربّكم |
قضى
وأوجب - تفضّلا وإحسانا |
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54 |
بجهالة |
بسفاهة
وكلّ عاص مُسيء جاهل |
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57 |
يقصّ الحقّ |
يتبعه
فيما يحكم به أو يُبيّنه بيانا شافيا |
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57 |
خير الفاصلين |
بين
الحقّ والباطل بحكمه العدل |
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59 |
كتاب مبين |
اللّوح
المحفوظ أو علمه تعالى |
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60 |
جرحتم بالنّهار |
كسبتم
فيه بجوارحكم من الإثم |
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61 |
لا يفرّطون |
لا
يتوانون أو لا يُقصّرون |
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63 |
تضرّعا |
مُعلنين
الضّراعة والتذلّل له |
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63 |
خُفية |
مسرّين
بالدّعاء |
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65 |
يلبسكم |
يخلطكم
في ملاحم القتال |
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65 |
شيعا |
فِرقا
مُختلفة الأهواء |
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65 |
بأس بعض |
شدّة
بعض في القتال |
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65 |
نصرّف الآيات |
نكرّرها
بأساليب مختلفة |
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66 |
بوكيل |
بحفيظ
وكّل إليّ أمركم فأجازيكم |
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68 |
يخوضون |
يأخذون
في الاستهزاء والطّعن |
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70 |
غرّتهم |
خدعنهم
وأطمعتهم بالباطل |
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70 |
أن تُبسل نفس |
لئلاّ
تحبس في النّار أو تسلم للهلكة |
|
70 |
تعدل كلّ عدل |
تفتد
بكلّ فداء |
|
70 |
أبسلوا |
حبسوا
في النّار أو أسلموا للهلكة |
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70 |
حميم |
ماء
بالغٍ نهاية الحرارة |
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71 |
استهوته الشّياطين |
هوت
به في المهمه فأضلّته |
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71 |
أُمرنا لنُسلم |
أمرنا
بأن نسلم ونخلص العبادة |
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73 |
الصّور |
القرن
الذي بنفخ فيه إسرافيل |
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74 |
آزر |
لقب
والد إبراهيم أو اسم عمّه |
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75 |
ملكوت . . |
مُلك،
أو آيات أو عجائب . . |
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76 |
جنّ عليه اللّيل |
ستره
بظلامه |
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76 |
أفل |
غاب
وغرب تحت الأفق |
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77 |
بازغا |
طالعا
من الأفق مُنتشر الضّوء |
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79 |
فطر السّماوات |
أوجدها
وأنشأها |
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79 |
حنيفا |
مائلا
عن الباطل إلى الدّين الحقّ |
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80 |
حاجّه قومه |
خاصموه
في التوحيد |
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81 |
سلطانا |
حجّة
وبرهانا |
|
82 |
لم يلبسوا |
لم
يخلطوا |
|
82 |
بظلم |
بشرك
. بكفر |
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87 |
اجتبيناهم |
اصطفيناهم
بالنّبوة |
|
88 |
لحبط |
لبطل
وسقط |
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89 |
الحكم |
الفصل
بين النّاس بالحقّ، أو الحكمة |
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90 |
اقتده |
اقتد،
والهاء للسكت |
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91 |
ما قدروا الله |
ما
عرفوا الله، أو ما عظّموه |
|
91 |
قراطيس |
أوراقا
مكتوبة مفرّقة |
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91 |
قل الله |
قل
الله أنزله (التوراة) |
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91 |
خوضهم |
باطلهم |
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92 |
مبارك |
كثير
المنافع والفوائد (القرآن) |
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92 |
أم القرى |
مكّة
: أي أهلها |
|
92 |
من حولها |
أهل
المشارق والمغارب |
|
93 |
غمرات الموت |
سكراته
وشدائده |
|
93 |
أخرجوا أنفسكم |
خلّصوها
ممّا هي فيه من العذاب |
|
93 |
عذاب الهون |
الهوان
الشّديد والذّل والخزي |
|
94 |
ما خوّلناكم |
ما
أعطيناكم من متاع الدّنيا |
|
94 |
تقطّع بينكم |
تفرّق
الاتّصال بينكم |
|
95 |
فالق الحبّ |
شاقّه
عن النبات . أو خالقه |
|
95 |
فأنّا تُؤفكون |
فكيف
تصرفون عن عبادته ؟ |
|
96 |
فالق الإصباح |
شاقّ
ظلمته عن بياض النّهار أو خالقه |
|
96 |
الشّمس والقمر
حُسبانا |
يجريان
في أفلاكهما بحساب مقدّر نيطت به مصالح الخلق |
|
98 |
فمستقرّ |
في
الأصلاب، وفقيل في الأرحام ونحوها |
|
98 |
ومستودع |
في
الأرحام ونحوها وقيل في الأصلاب |
|
99 |
خضرا |
شيئا
أخضر غضّا |
|
99 |
حبّا مُتراكبا |
متراكما
كسنابل الحنطة ونحوها |
|
99 |
طلعها |
هو
أوّل ما يخرج من ثمر النّخل في الكيزان |
|
99 |
ألوان |
عذوق
وعراجين كالعناقيد تنشق عنها الكيزان |
|
99 |
دانية |
متدلّية
أو قريبة من المتناول |
|
99 |
وينعه |
وإلى
حال نضجه وإدراكه |
|
100 |
الجنّ |
الشّياطين
حيث أطاعوهم في الكفر |
|
100 |
خرقوا له |
اختلقوا
وافتروا له سبحانه |
|
101 |
بديع . . |
مُبدع
ومُخترع |
|
101 |
أنّا يكون |
كيف
. أو من أين يكون ؟ |
|
102 |
وكيل |
رقيب
ز متولّ |
|
103 |
لا تدركه الأبصار |
لا
تُحيط به تعالى |
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104 |
بصائر |
آيات
وبراهين تهدي للحقّ |
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104 |
بحفيظ |
برقيب
أُحصي أعمالكم لمجازاتكم |
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105 |
نصرّف الآيات |
نكرّرها
بأساليب مختلفة |
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105 |
درست |
قرأت
وتعلّمت من أهل الكتاب |
|
108 |
عدوًا |
اعتداء
وظلما |
|
109 |
جهد أيمانهم |
مجتهدين
في الحلف بأغلظها وأوكدها |
|
110 |
نذرهم |
نتركهم |
|
110 |
طُغيانهم |
تجاوزهم
الحد ّبالكفر |
|
110 |
يعمهون |
يعمون
عن الرّشد أو يتحيّرون |
|
111 |
حشرنا |
جمعنا |
|
111 |
قُبُلا |
مُقابلة
ومواجهة أو جماعة جماعة |
|
112 |
زُخرف القول |
باطله
المُموّه المزوّق |
|
112 |
غرورا |
خداعا
وأخذا على الغرّة |
|
113 |
لتصغى إليه |
لتميل
إلى زُخرف القول |
|
113 |
ليقترفوا |
ليكتسبوا
من الآثام |
|
114 |
الممترين |
الشاكّين
في أنّهم يعلمون ذلك |
|
115 |
كلمة ربّك |
كلامه
وهو القرآن العظيم |
|
115 |
صدقا وعدلا |
في
مواعيده - وفي أحكامه |
|
116 |
يخرُصون |
يكذبون
فيما ينسُبونه إلى الله |
|
120 |
ذروا |
اتركوا |
|
120 |
يقترفون |
يكتسبون
من الإثم أيّا كان |
|
121 |
إنّه لفسق |
خروج
عن الطّاعة ومعصية |
|
124 |
صغارٌ |
ذلّ
عظيم وهوان |
|
125 |
حرجًا |
شديد
الضّيق |
|
125 |
يصّعد في السّماء |
يتكلّف
صعودها فلا يستطيع |
|
125 |
الرّجس |
العذاب
أو الخذلان |
|
128 |
استكثرتم من
الإنس |
أكثرتم
من دعوتهم للضّلال والغواية |
|
128 |
النّار مثواكم |
مأواكم
ومستقرّكم ومقامكم |
|
130 |
غرّتهم الحياة |
خدعتهم
ببهرجها |
|
134 |
بمُعجزين |
بفائتين
من عذاب الله بالهرب |
|
135 |
مكانتكم |
غاية
تمكّنكم واستطاعتكم |
|
136 |
ذرأ |
خلق
على وجه الإختراع |
|
136 |
الحرث |
الزّرع |
|
136 |
الأنعام |
الإبل
والبقر والضّأن والمعز |
|
137 |
قتل أولادهم |
وأد
البنات الصّغار أحياءً |
|
137 |
ليُردوهم |
ليُهلكوهم
بالإغواء |
|
137 |
ليلبِسوا عليهم |
ليخلطوا
عليهم |
|
137 |
يفترون |
يختلقونه
من الكذب |
|
138 |
حرث |
زرع |
|
138 |
حِجر |
محجورة
مُحرّمة |
|
138 |
حُرّمت ظهورها |
البحائر
والسّوائب والحوامي |
|
139 |
وصفهم |
كذبهم
على الله بالتحليل والتحريم |
|
141 |
معروشات |
مُحتاجة
للتعريش كالكرم ونحوه |
|
141 |
غير معروشات |
مُستغنية
عنه بإسوائها كالنّخل |
|
141 |
مختلفا أكله |
ثمره
المأكول في الهيئة والكيفية |
|
142 |
حمولة |
ما
يحمل الأثقال كالإبل |
|
142 |
فرشا |
ما
يُفرش للذّبح كالغنم |
|
142 |
خطُوات الشيطان |
طرقه
وآثاره تحليلا وتحريما |
|
144 |
وصّاكم الله
بهذا |
أمركم
الله بهذا التّحريم |
|
145 |
طاعمٍ يطعمه |
آكل
أيّا كان يأكله |
|
145 |
دما مسفوحا |
سائلا
مهراقا |
|
145 |
فإنّه رجس |
قذر
أو خبيث أو نجس حرام |
|
145 |
أهلّ لغير الله
به |
ذكر
عند ذبحه اسم غير الله |
|
145 |
اضطرّ |
أُلجئ
إلى أكله للضرورة |
|
145 |
غير باغٍ |
غير
طالب للمحرّم للذّة أو استئثار |
|
145 |
ولا عادٍ |
ولا
متجاوز ما يسدّ الرّمق |
|
146 |
ذي ظفر |
ما
له اصبع : دابة أو طيرا |
|
146 |
شحومهما |
شحوم
الكرش والكليتين |
|
146 |
ما حملت ظهورهما |
ما
علق بهما من الشحم فيُحلّ |
|
146 |
الحوايا |
المصارين
والأمعاء فيُحلّ شحمها |
|
146 |
ما اختلط بعظم |
إلية
الضّأن فتحل |
|
147 |
لا يردّ بأسه |
لا
يُدفع غذابه ونقمته |
|
148 |
تخرصون |
تكذبون
على الله تعالى |
|
149 |
الحجّة البالغة |
بارسال
الرّسل وانزال الكتب |
|
150 |
هلمّ شُهداءكم |
أحضروا
أو هاتوا شهودكم |
|
150 |
بربّهم يعدلون |
يسوّون
به غيره في العبادة |
|
151 |
أتلُ . . |
أقرأ
. . |
|
151 |
إملاق |
فقر |
|
151 |
الفواحش |
كبائر
المعاصي كالزّنى ونحوه |
|
151 |
وصّاكم به |
أمركم
وألزمكم به |
|
152 |
يبلغ أشدّه |
استحكام
قوّته ويرشد |
|
152 |
بالقسط |
بالعدل
دون زيادة ونقص |
|
152 |
وُسعها |
طاقتها
وما تقدِر عليه |
|
153 |
صراطي مستقيما |
سبيلي
وديني لا اعوجاج فيه |
|
157 |
صدف عنها |
أعرض
عنها أوصرف النّاس عنها |
|
158 |
يأتي ربّك |
ايتاءً
يليق بجلاله تعالى وقدسه |
|
159 |
كانوا شيعا |
فرقا
وأحزابا في الضّلالة |
|
161 |
دينا قيما |
ثابتا
مُقوّما لأمور المعاش والمعاد |
|
161 |
حنيفا |
مائلا
عن الباطل إلى الدّين الحق |
|
162 |
نسُكي |
عبادتي
كلّها |
|
164 |
إلا عليها |
إلاّ
ذنبا محمولا عليها عقابه |
|
164 |
لا تزر وازرة |
لا
تحمل نفس آثمة . . |
|
165 |
خلائف الأرض |
يخلُف
بعضكم بعضا فيها |
|
165 |
ليبلُوكم |
ليختبركم
وهو بكم عليم |